Property Ownership: अक्सर लोग यह मानते हैं कि अगर किसी व्यक्ति ने वसीयत (Will) के माध्यम से प्रॉपर्टी किसी के नाम कर दी है, तो उसे स्वाभाविक रूप से मालिकाना हक (Ownership Rights) मिल जाता है. इसी तरह पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) को भी बहुत लोग मालिकाना अधिकार का दस्तावेज समझते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में इस भ्रम को पूरी तरह स्पष्ट करते हुए कहा है कि केवल वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर किसी को संपत्ति का मालिक नहीं माना जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी (Ghanshyam vs Yogendra Rathee) मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि वसीयत और पावर ऑफ अटॉर्नी मालिकाना हक के लिए वैध दस्तावेज नहीं माने जा सकते. कोर्ट ने कहा कि वसीयत तब तक प्रभावी नहीं होती जब तक वसीयतकर्ता की मृत्यु न हो जाए. इसके अलावा वसीयत को वसीयतकर्ता कभी भी बदल सकता है.
वसीयत का कानूनी महत्व क्या है?
- वसीयत एक ऐसा दस्तावेज होता है जो किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति के वितरण की इच्छा को दर्शाता है.
- यह जीवनकाल में प्रभावी नहीं होता और इसे कभी भी बदला या रद्द किया जा सकता है.
- अगर वसीयत को जबरदस्ती या दबाव में लिखवाया गया हो, तो उसे कोर्ट में चुनौती भी दी जा सकती है.
इसलिए केवल वसीयत दिखाकर किसी संपत्ति पर तत्काल मालिकाना दावा नहीं किया जा सकता.
क्या पावर ऑफ अटॉर्नी से बन सकते हैं प्रॉपर्टी के मालिक?
कोर्ट ने पावर ऑफ अटॉर्नी को लेकर भी साफ कहा है कि यह दस्तावेज किसी को स्वामित्व अधिकार नहीं देता.
- पावर ऑफ अटॉर्नी एक ऐसा समझौता है जिससे कोई व्यक्ति दूसरे को अधिकार देता है कि वह उसकी ओर से कोई कार्य करे.
- लेकिन जब तक उस अधिकार के तहत कोई सेल डीड या रजिस्ट्री तैयार नहीं होती, तब तक कोई भी स्वामित्व प्राप्त नहीं कर सकता.
इसलिए सिर्फ पावर ऑफ अटॉर्नी दिखाकर कोई संपत्ति अपने नाम करवाना कानून के खिलाफ माना जाएगा.
मालिकाना हक के लिए जरूरी हैं ये दस्तावेज
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि:
- 100 रुपये से अधिक कीमत वाली किसी भी अचल संपत्ति पर अधिकार तभी वैध होगा जब वह रजिस्ट्री (Registered Sale Deed) या नामांतरण (Mutation) के जरिए प्राप्त हो.
- वसीयत और पावर ऑफ अटॉर्नी जैसे दस्तावेज संपत्ति की रजिस्ट्री या म्युटेशन का विकल्प नहीं हो सकते.
इसलिए अगर आप किसी की संपत्ति के मालिक बनना चाहते हैं, तो पंजीकृत रजिस्ट्री या ट्रांसफर डीड अनिवार्य है.
कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसले में यह भी कहा कि:
- यदि पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर कोई और कानूनी प्रक्रिया नहीं की गई है. जैसे सेल डीड तैयार करना, तो यह दस्तावेज निष्प्रभावी माना जाएगा.
- ऐसी स्थिति में पावर ऑफ अटॉर्नी मालिकाना अधिकार के लिए पर्याप्त नहीं है.
यह फैसला ऐसे सभी मामलों के लिए मार्गदर्शन करता है जहां केवल इन दस्तावेजों के दम पर प्रॉपर्टी ट्रांसफर का दावा किया जाता है.
क्यों होता है यह भ्रम?
भारत में प्रॉपर्टी से जुड़े मामलों में कानूनी जागरूकता की कमी की वजह से लोग अक्सर यह मान लेते हैं कि:
- वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी के दस्तावेज मिल जाने से वह संपत्ति के मालिक बन जाते हैं.
- परंतु इन दस्तावेजों की सीमाएं होती हैं और इनका उपयोग केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है.
इस भ्रम के चलते अनेक कानूनी विवाद खड़े हो जाते हैं. जिनका निपटारा वर्षों तक कोर्ट में चलता है.
वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर खरीद-बिक्री है गैरकानूनी
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि कोई भी व्यक्ति पावर ऑफ अटॉर्नी या वसीयत के आधार पर संपत्ति की बिक्री नहीं कर सकता. जब तक कि वह रजिस्टर्ड सेल डीड के जरिए संपत्ति को वैध रूप से ट्रांसफर न करे. ऐसे ट्रांजैक्शन को मान्यता देना स्टैच्यूटरी लॉ (Statutory Law) का उल्लंघन माना जाएगा.